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सूचना अधिकार अधिनियम को धारहीन बनाते लोक सेवक

 


रिपोर्ट @संतोष कुमार मिश्रा 

जानकारी मांगने पर उलटी कार्यवाही कर बनाते हैं दबाव

उमरिया--- एक लंबी लड़ाई के बाद भष्ट्राचार को बेनकाब करने के लिए देश के नागरिकों को मिला सूचना अधिकार अधिनियम का हथियार को तथाकथित लोक सेवक धारहीन बनाते देखे जा रहे हैं। उमरिया जिले में तो इसकी धज्जियाँ उड़ा कर रख दी गयी है। सूचना अधिकार अधिनियम को लागू हुए दो दशक पूरे हो रहे हैं,परन्तु आज भी नौकर शाह इसे मजाक बना कर रखे हुए हैं। जब इसेे लागू किया गया था तब  बकायदा हर कार्यालयों में लोक सूचना अधिकारी, सहायक लोक सूचना अधिकारी, अपीलीय अधिकारी का नाम, पद, कार्यालय के विधिवत बडे अक्षरों में नोटिस बोर्ड बनाकर पेंट से लिखाया गया था, परन्तु आज सब कुछ गौण हो चुका है। विदित होवे की सूचना अधिकार अधिनियम आज लोक सेवकों की मनमानी का शिकार हो कर रह गई है।
उल्लेखनीय है कि उमरिया जिले के पाली तहसील में  अनुविभागीय अधिकारी राजस्व कार्यालय में सूचना अधिकार अधिनियम की बखूबी अनदेखी की जाती है । ऐसे अनेकों मामले प्रकाश में आये है, जिनमें सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी नहीं दी जाती है ‌। सूचना अधिकार अधिनियम का पालन न करने से जहाँ एक ओर आवेदकों का समय अधिक लगता है,साथ ही क ई आवेदक जानकारी लेने से वंचित रह जाते हैं, इसके अलावा अपील होने की दशा में संबंधित विभाग को जानकारी मुफ्त में देनी पडती है, जिसपर संबंधित विभाग को व्यय  उठाना पड़ता है।
पाली नगर के समाज सेवी और आर टी आई (इक्टिवटश) कार्यकर्ता पुरूषोतम गुप्ता ने बताया कि अनुविभागीय अधिकारी राजस्व पाली के कार्यालय में  6-5-25 को आवेदन सूचना अधिकार का आवेदन पत्र अनुविभागीय अधिकारी राजस्व पाली के यहाँ लगाकर जानकारी चाही गयी थी लेकिन तय समय सीमा के अन्दर जानकारी नहीं दी गई, जिससे व्यथित होकर श्री गुप्ता जी ने पुनः 14-6-25  को अपील प्रस्तुत जानकारी चाही गयी है, जिस पर अभी तक जानकारी दिये जाने संबंधित कोई कार्यवाही दिखाई नहीं दी गई है। यद्यपि यह सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत अध्यक्ष मां बिरासनी संचालन एवं प्रबंध समिति के नाम पर लगायी गई है। बताया जाता है कि इस समिति के अध्यक्ष पदेन अनुविभागीय अधिकारी राजस्व पाली होते हैं। बिरासनी मंदिर समिति में सामग्री खरीदी मामले में व्यापक स्तर पर गडबडी की शिकायत प्रकाश में आयी थी और इसको लेकर उच्च न्यायालय जबलपुर तक इसकी शिकायत की गयी थी , जिसमें उच्च न्यायालय ने सामग्री खरीदी के लिए आवश्यक दिशा निर्देश दिए गए थे, लेकिन उन मापदण्डों की अवहेलना करते हुए खरीदी की गयी थी। उच्च न्यायालय से बचाव के लिए अब सूचना अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ा कर जिम्मेदार अधिकारी अपनी जान बचाते देखे जाते हैं। अगर सूचना अधिकार अधिनियम के अपील के बाद भी जानकारी नहीं मिलती तो आवेदक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटायेगे।


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