रिपोर्ट @मिर्जा अफसार बेग
अनूपपुर। भारतीय जनता पार्टी 2025 में नये जिलाध्यक्ष प्राप्त होंगे। इसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है। संगठन पर्व के रुप में रायशुमारी कर जमीनी, विचारधारा और निष्ठावान कार्यकर्ताओं की मंशा,उनकी इच्छाओं को जानने की कोशिश की गयी और तीन - तीन नाम मांगे गये थे। इससे जुड़े आम कार्यकर्ता पूछते देखे जा रहे हैं कि दशकों से प्रत्येक निर्वाचन और उसके बाद पूरे साल, 52 सप्ताह तमाम कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं को झोंकने वाली पार्टी की राज्य और केन्द्र इकाई के पास एक - एक कार्यकर्ता का पूरा कार्य, व्यवहार, आचरण का डिटेल होता है। उनकी वरिष्ठता, अनुशासन से जुडे मामलों का भी। दायित्व और टिकट वितरण में फिर इतनी मारामारी क्यों ?परीक्षण कर सभी जिलों मे संगठन के लिये सुयोग्य जिलाध्यक्ष क्यों नहीं निर्वाचित किया जाता।
मध्यप्रदेश में जिलाध्यक्ष और मंडलों के लिये उम्र की सीमा तय की गई हैं । क्या सच में इसकी कोई जरुरत थी? वर्षों तक पार्टी के लिये त्याग करने वाले तमाम कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित किया गया है। जिलाध्यक्ष निर्वाचन की रायशुमारी के पूर्व शामिल होने वाले लोगों के चयन में जमकर जातिवाद और पट्ठावाद चलाया गया। वर्षो पुराने कार्यकर्ता और पूर्व पदाधिकारियो को इससे बाहर रखा गया। इससे भी लोगों में भारी नाराजगी है।
भाजपा भी कांग्रेस की राह पर चलने लगी हैं यह हमारी भाषा नहीं यह पार्टी के निष्ठायवान कार्यकर्ताओं की पीड़ा हैं। जहां संगठन अब सत्ता के पीछे चल रहा हैं। पार्टी में जब से घुसपैठिये को तब्बजों न मिलना पीड़ादायक हैं। जिलाध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष के चयन में कार्यकर्ताओं की जगह मंत्री,सांसद, विधायकों की पसंद को तवज्जो दी जा रही है। यह परिपार्टी वर्षों से होने के कारण भारतीय जनता पार्टी जिला, राज्य स्तर पर अन्य दलों के दोष से युक्त और गुटबाजी का शिकार हो कर रह गई है। भाजपा में जिलाध्यक्ष यदि मंत्री, सांसद,विधायकों की पसंद - नापसंद से बनाए जा रहे हैं तो यह संगठन को सत्ता की चौखट पर बांधने जैसा है। अच्छा होता कि स्वतंत्र निर्वाचन करके संगठन को मजबूत बनाने का कार्य किया जाता। लगभग हर चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों के विरुद्ध कार्य करने वाले, अधिकृत प्रत्याशी के विरुद्ध चुनाव लड़ने वाले दागी, बागी,गद्दार और आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग टिकट और संगठन चुनाव में जमकर दावेदारी करते हैं। आरोप लगाए गये है कि ऐसे लोगों को वरिष्ठ नेताओं से ही प्रश्रय मिलता है। क्योंकि अनुशासन समिति किसी के विरुद्ध कोई ठोस कार्यवाही नहीं करती। अनुशासन समितियाँ शक्ति,अधिकार विहीन हैं । प्रदेश अध्यक्ष और संगठन महामंत्री का स्पष्ट निर्देश है कि टिकट और जिलाध्यक्ष के लिये दिल्ली, भोपाल की परिक्रमा न करें। इसके बावजूद वहाँ ठेकेदार,सप्लायर, सेठ टाईप दावेदारों को सूटकेस लेकर होटलों में हफ्तों से टिके होने और नेताओं से संपर्क साधते देखा जा रहा है। ऐसे में संगठन निर्वाचन में भी धनबल का बोलबाला देखा जा रहा है।
भाजपा विश्व की एकमात्र विचारधारा आधारित, बूथ लेवल की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी है। लगातार सत्ता में होने के कारण संगठन और सत्ता में समन्वय की जगह बहुत से जिलों में संगठन मंत्रियों , विधायकों के चरणों में शरणागति की स्थिति जमीनी कार्यकर्ताओं और संगठन के लिये असहज है। समय रहते पार्टी के कर्ता - धर्ताओं को विचार करना होगा। कुछ ही दिन या घंटों में नये जिलाध्यक्षों की घोषणा हो जाएगी। देखना होगा कि मंत्री, सांसद,विधायकों के पट्ठों को तवज्जो मिलती है या संगठन की इच्छा ,हित, विचारधारा का सम्मान होता है।
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