रिपोर्ट @मिर्जा अफसार बेग
• प्रताप की 485वीं जयंती पर शहडोल नगर में ऐतिहासिक शौर्य यात्रा श्री राजपूत करणी सेना द्वारा निकाली गई.
• समाज की एकता और परंपरा का उत्सव, नगरवासियों में अदम्य उत्साह के साथ जगह-जगह किया स्वागत
शहडोल। गुरुवार का दिन क्षत्रिय समाज के हृदय में एक गौरवशाली गाथा की तरह अंकित रहेगा। यह दिन न केवल वीरता का उत्सव था, बल्कि अपनी अस्मिता, स्वाभिमान और सांस्कृतिक विरासत को संजोने का एक ऐतिहासिक अवसर भी। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 485वीं जयंती पर शहडोल नगर में निकाली गई भव्य शौर्य यात्रा ने समस्त नगर को एक ऐसे अद्भुत उत्साह से भर दिया, जो वर्षों तक लोगों के मन में गूंजता रहेगा। शाम पांच बजे बाणगंगा मेला मैदान पर जब यात्रा का आरंभ हुआ, तो क्षत्रिय समाज के स्वागत के लिए आसमान ने भी दिल खोल कर बरसात कि उस दौरान ऐसा लगा मानो इतिहास फिर से जीवित हो उठा है। श्री राजपूत करणी सेना के प्रदेश अध्यक्ष सहेंद्र सिंह, प्रदेश संगठन प्रभारी शिव सिंह, प्रदेश उपाध्यक्ष गणेश प्रताप सिंह दादू और प्रदेश प्रवक्ता राहुल सिंह राणा की अगुवाई में यात्रा का शुभारंभ हुआ। युवा पारंपरिक पोशाकों में सजे-धजे महाराणा प्रताप की गौरवगाथा का सजीव चित्रण कर रहे थे।
ढोल-नगाड़ों और शौर्य गीतों से गूंज उठा नगर
इस शौर्य यात्रा में ढोल-नगाड़ों की थाप, शौर्य गीतों की ओजस्वी धुनें और ‘महाराणा प्रताप अमर रहें’ के गगनभेदी नारे वातावरण में गूंज रहे थे। यात्रा में संगठन ने तीन-तीन डीजे की व्यवस्था कर रखी थी. मानो हर कण-कण में महाराणा प्रताप की वीरता का उद्घोष हो रहा था। इस यात्रा में शामिल प्रत्येक व्यक्ति की आंखों में अपने महान पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और गर्व स्पष्ट झलक रहा था। जैसे-जैसे यह यात्रा बाणगंगा तिराहा, जयस्तंभ चौक, राजेंद्र टाकीज चौक, पुराना नगर पालिका चौक, गांधी चौक, इंद्रा चौक और लल्लू सिंह चौक से होती हुई वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप चौक तक पहुंची, नगरवासियों ने फूल माला के साथ पुष्पवर्षा, पानी, कोल ड्रिंक से यात्रा का स्वागत किया। घरों की छतों से लोग अपनी वीर परंपरा के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए, पुष्प वर्षा कर रहे थे। रास्ते में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी पूरे जोश के साथ यात्रा में सम्मिलित थे। प्रदेश प्रवक्ता राहुल सिंह राणा ने कहा कि महाराणा प्रताप केवल एक महान योद्धा नहीं थे, बल्कि भारतीय इतिहास के ऐसे अमर नायक थे जिन्होंने हमें सिखाया कि मातृभूमि की रक्षा सर्वोच्च धर्म है। उनका जीवन हमें बताता है कि अन्याय के विरुद्ध डटकर खड़ा रहना और अपने गौरव को अक्षुण्ण रखना ही क्षत्रिय धर्म है। उनके आदर्श आज भी हमारे जीवन को दिशा प्रदान करते हैं।
शौर्य, संस्कृति और परंपरा का संगम
यह यात्रा केवल महाराणा प्रताप की वीरता को नमन करने का अवसर नहीं थी, बल्कि हमारे समाज की गौरवशाली परंपरा और एकता का उत्सव भी थी। युवाओं ने अपने पारंपरिक शस्त्रों और युद्धाभ्यास के प्रदर्शन से यह सिद्ध कर दिया कि क्षत्रिय समाज की जड़ें कितनी गहरी और मजबूत हैं। केसरिया झंडों से सजी वाहन, डीजे के धुन पर नाचते युवा, रंग बिरंगे साफा से सजे वीर महाराणा प्रताप के वंशज और क्षत्रियों कि शालीनता ने इस यात्रा को और भव्य बना दिया। यात्रा के मार्ग में महाराणा प्रताप के जीवन की झांकियों ने जैसे इतिहास के पन्नों को दोबारा जीवित कर दिया हो।
समाज के युवा पढ़ाई पर दे विशेष ध्यान: सहेंद्र
श्री राजपूत करणी सेना के प्रदेश अध्यक्ष सहेंद्र सिंह ने कार्यक्रम में कहा कि क्षत्रिय युवकों को पढ़ाई अति आवश्यक है. आज की इस दौर में युवा गलत राह पर चल रहे हैं. उन्होंने उपस्थित सभी युवाओं से अपील किया 4 साल अपने पढ़ाई के लिए दें और अपना भविष्य उज्जवल करें. नशे की गिरफ्त में नहीं आए प्रयास करें कि आईएएस आईपीएस बन कर अपने कुल का नाम रोशन करें.
समापन पर हुआ सामूहिक नमन
शौर्य यात्रा का समापन वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप चौक पर स्थित न्यू यश पैलेस पर हुआ।
कार्यक्रम का संचालन अजय सिंह बघेल ने किया. यहां उपस्थित जनसमूह ने महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की। क्षत्रिय समाज के पदाधिकारियों और युवाओं ने यहां समाज की एकता, सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और मातृभूमि के लिए बलिदान देने की शपथ ली। इस अवसर पर सभी ने एक स्वर में जयकारे लगाकर वीरता का संकल्प दोहराया।
नगर में दिखा अद्भुत उल्लास
नगर के कोने-कोने में भगवा ध्वज, महाराणा प्रताप के चित्र और पारंपरिक सजावट से सजी गलियां एक अलौकिक दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं। हर द्वार, हर घर से वीरता की गाथाएं झलक रही थीं। नगरवासियों ने यात्रा को ऐतिहासिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर कोई इस ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा बनकर अपने पूर्वजों के प्रति नतमस्तक नजर आ रहा था।
यात्रा ने जगाया आत्मगौरव
आज की यह यात्रा केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि हमारे भीतर सोए आत्मगौरव और स्वाभिमान को जगाने का अवसर थी। इस यात्रा ने यह संदेश दिया कि हमारी संस्कृति और परंपरा ही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है। महाराणा प्रताप जैसे महान योद्धाओं के बलिदान और संघर्ष हमें सिखाते हैं कि जब तक हम अपनी अस्मिता और संस्कृति से जुड़े रहेंगे, कोई भी ताकत हमें मिटा नहीं सकती।
0 Comments