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अच्छे दिनो ' की मृगतृष्णा में आदिवासी गाँवों की त्रासदी भरी दास्तान

 


रिपोर्ट @संतोष कुमार मिश्रा

देश आजाद  हुआ पर आदिवासियों को अब भी वही पाबंदी, वही पराधीनता 

बिजली के दर्शन हुए नहीं, उजाले के नाम पर कैरोसीन भी छीना

उमरिया --- मध्य प्रदेश के उमरिया जिल में अब भी दर्जनों  गाँव  ऐसे है जहाँ पर  अभी भी  मूलभूत सुविधाएं गरीब आदिवासियों के लिए मृगतृष्णा बनी हुई है।देश  आजाद होकर आठवे दशक में प्रवेश कर रहा है परन्तु आदिवासियों की  बुनियादी समस्याओं का पहाड़ वैसे ही खडा है जैसे 1947 में था ।साल दर साल गुजरते गये, आदिवासियों के कल्याण के लिए अरबो खरबो की धन राशि आयी और व्यय हुई लेकिन उनके दुर्रदिनो पर कोई बदलाव नहीं हुआ।  गाँवों  के लोग आज भी पाषाण युग में जीने के लिए अभिश्रापित है। उन्हें आज भी बिजली,पानी, सडक जैसी मूलभूत सुविधाओं का इंतजार बना हुआ है। आज देश अमृत काल की शुभ बेला से गुजर रहा है वही पर वनांचल के आदिवासियों के लिए अंधकार के आगोस में समाये हुये हैं।  देश की सरकारें आज अमृत महोत्सव के जश्न में डूबी हुई है और आदिवासी वर्ग अंधकार से छुटकारे की आस में प्रकाश की  एक किरण के लिए सांस गिन रहा है।  अभी भी जिला के दूर दराज क्षेत्रों में बिजली जैसी बुनियादी जरूरत की पहुंच न होने के कारण लोगों का जीवन उन्नीसवीं सदी में जीने के लिए मजबूर है। ऐसे गाँवों में आदिवासी विकास खंड के बाघन्नारा,गांधी ग्राम, चिनकी और सास जैसे वनांचल के गाँव आज अंधेरे में जीवन यापन कर रहे हैं। इन  गांवो  के लोग रात में अंधकार से निपटने के लिए  रोशनी के लिए एक मोमबत्ती का सहारा लेते हैं।देश  की सरकारें यह मानकर की पूरे देश में अंधकार से निपटने के कारगर बिजली आपूर्ति हो गयी है और अब कैरोसीन की आवश्यकता नहीं है, यह मानकर गरीब आदिवासियों को मिलने वाली शासकीय उचित मूल्य दूकानों से कैरोसीन की सुविधा भी छीन ली गई है। मामला जिले के आदिवासी विकास खंड क्षेत्र के पाली जनपद के ग्राम सांस का है। यहां आजादी के बाद अब भी बुनियादी सुविधाओं का टोटा है। पाली के इस सांस गाँव मे  में तकरीबन  70 बैगा जाति के लोग निवास करते है। लगभग 100 से 200  की आबादी वाले इस गांव में रहते हैं जहाँ माध्यमिक तक एक विद्यालय भी है। 

*आजादी के 78 वर्ष बाद भी गाँव  अंधकार में

ग्रामीण बताते हैं कि देश की आजादी के 78 साल बाद भी गांव की सूरत नहीं बदल सकी है। गांव में विद्युतीकरण नहीं हो सका है। कई वर्ष पहले गांव में बिजली के खम्भे खड़े कर  तार दौड़ा दी गयी, लेकिन अभी तक तार   गाँव मे रोशनी की किरणें गाँव तक नहीं पहुंच सकी। प्रशासनिक अमले के साथ इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने भी  इनके भविष्य के साथ खूब खिलवाड़ किया इनके द्वारा वोट के बदले  सिर्फ आश्वसान की घुट्टी  ही मिली, यही वजह है की इक्कीसवीं सदी में भी यहाँ के लोग उन्नीसवीं सदी का जीवन गुजार रहे हैं, उससे निपटने और समाधान के लिए कोई आवश्यक पहल करने को तैयार नहीं है। 

*रात में उजाले के लिए सौर ऊर्जा व मोमबत्ती बना शहारा*

गांव के लोग कहते हैं कि बिजली न होने से रात में जंगली जानवरों का भय बना रहता है। लोगों को रात में उजाले के लिए सौर ऊर्जा व मोमबत्ती का सहारा लेना पड़ता है, विद्युतीकरण न होने से यहां के लड़कों की शादी में भी मुश्किल होती है। सरकार ने केरोसिन भी बंद कर दिया है, वैकल्पिक तरीके से उजाला करना पड़ता है। जिससे बच्चों को पढ़ाई में दिक्कत होती है।

*बैगा बस्ती में नही पहुँच सकी बिजली उजाला देखने को तरस रहा बैगा जाति*

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश के हर घर तक बिजली पहुंचाने के लिए सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य) लांच की थी, जिसके तहत घर घर बिजली देने का प्लान बनाया, लेकिन दिल्ली और भोपाल में बनी ये योजनाए सायद यहां पहुच ही नहीं पाई।  उमरिया जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के बिरसिंहपुर पाली जनपद के कठई पंचायत के सांस गाँव व चांदपुर पंचायत के बाघन्नारा जहाँ बैगा जाति की बस्ती है जहां सांस गाँव मे लगभग 200 परिवार तो बाघन्नारा में लगभग 500 परिवार बैगा जाति के लोग निवाश करते लेकिन आज तक इस सांस गाँव मे उजाला को देखने के लिए कई वर्ष गुजर गए वन विभाग के जंगलों में खंभे लग गए तार भी दौड़ दिए लेकिन आज 5 से 6 वर्ष बीतने जा रहा तार में करेण्ट कब आएगा कोई बताने वाला नही है।

 *विकास की किरण देखने के लिए तरस रहा है यह बैगा बस्ती का सांस गांव*

इस गांव के रहवासी अंधेरे में रहने और पगडंडियों के सहारे चलना ही अपनी नियति मान चुके हैं। वहीं, इस गांव की आने वाली नई पीढ़ी को प्रदेश की सरकारों से काफी उम्मीदें थी। उनका मानना है कि आने वाले समय में हमारे भी घर बिजली से रोशन होंगे और हम उजासे से पक्की सड़कों पर चल सकेंगे लेकिन इस गांव के रह वासियों का दुर्भाग्य ही कहा जाए की 5 से 6 वर्ष बीत गए तार दौड़ने के बाद खंबे में आखिर विभाग ने करंट दौड़ने में क्यों सफल नहीं हो पाया। मध्यप्रदेश की ऊर्जाधानी, यूं तो पावर हब, कोयले की खान और खनिज संपदाओं की बाहुल्यता के लिए जानी जाती है। यहां की बिजली देश-विदेश को रोशन करती है। जब कि बैगा समुदाय के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं को लागू करता है और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास करता है, जिससे उनकी साक्षरता और आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके। लेकिन जिस गाँव मे उजाला ही न हो तो उस गाँव में साक्षरता कैसे सुधर सकती है। 

*वन विभाग की किल्लतों से कब तक समस्याओं से जूझते रहेंगे ग्रामीण*

बैगा बाहुल्य क्षेत्र जिले के पाली ब्लॉक  में ग्राम सांस, व ग्राम बाघन्नारा में बिजली न पहुंच पाने का मुख्य कारण दुर्गम इलाके, घने जंगल, वन विभाग की अनुमति (एनओसी) (वन संरचना अधिनियम के तहत), और विकास कार्यों में अधिकारियों की सुस्ती है, जिससे इन इलाकों में सड़क, पानी और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है,। जब कि सरकार विकाश की ढिंढोरा पीट रही हैं। "पीएम जन-मन" जैसी योजनाओं के जरिए विद्युतीकरण का काम तेजी से करने का दावा कर रही है.फिर ये गाँव अभी तक क्यो अछूता बना हुआ है।

बाघन्नारा बाघ कोरिडोर में -- दिगेेन्द्र सिंह

वन विभाग के अनुविभागीय अधिकारी पाली ने वन विभाग के अनापत्ति मामले में बताया की वन विभाग जन सुविधाओं के लिए वन भूमि पर भी अनापत्ति जारी कर काम करने की अनुमति प्रदान करती है,  वन विभाग भी लोगों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सदैव  कृत संकल्पित है, लेकिन बाघन्नारा गाँव जहाँ बिजली के लिए आवेदन प्राप्त हुआ है वह क्षेत्र  बाघ कोरिडोर में आता है जिस कारण ऐसे स्थलों पर अनापत्ति पी एम ओ कार्यालय दिल्ली  से मिलती है, अगर अन्य जगह से बिजली लाइन खीचने का प्रापोजल बनता है तो वन विभाग अनापत्ति जारी करने में देर नही करेंगी।




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