रिपोर्ट @मिर्जा अफसार बेग
पीएमओ तक पहुंची शिकायत
शिकायत और आरटीआई दबाने का आरोप
अनुपपुर ।। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (आईजीएनटीयू), अमरकंटक में बीते 5 मार्च को आयोजित शोध प्रवेश परीक्षा (आरईटी) 2024-25 में गम्भीर अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोपों ने विश्वविद्यालय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। पूर्व छात्र और छात्र प्रतिनिधि रवि त्रिपाठी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को संबोधित विस्तृत शिकायत में परीक्षा की पूरी प्रक्रिया की निष्पक्ष जांच की मांग की है।
ताज्जुब की बात तो यह है कि रवि द्वारा की गई शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय से शिक्षा मंत्रालय होते हुए मात्र 2 दिन में जांच के लिए आईजीएनटीयू भेज दी गई लेकिन आज एक महीने हो जाने के बाद भी शिकायत पर कोई जांच या कार्रवाई नहीं हुई है, यहां तक कि नोडल अधिकारी की कार्यशैली डरे-सहमे जैसी है, उन्होंने जांच के लिए उन्हीं को फाइल सौंप दी जो कि इस पूरी गड़बड़ी के मुख्य कर्ताधर्ता हैं।
शिकायत के बाद भी कार्रवाई ठप
जानकारी के अनुसार, रवि त्रिपाठी द्वारा 1 अप्रैल को पीएमओ को भेजी गई शिकायत 3 अप्रैल को शिक्षा मंत्रालय के माध्यम से आईजीएनटीयू प्रशासन को जांच हेतु भेजी गई थी लेकिन एक महीने बाद भी शिकायत पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। रवि का आरोप है कि नोडल अधिकारी डॉ. गौरी शंकर महापात्र ने फाइल उन्हीं के हवाले कर दी है, जो कथित रूप से अनियमितताओं के केंद्र में हैं। इससे शिकायत की निष्पक्षता पर गंभीर संदेह उत्पन्न हो गया है, रवि सहित सभी पीड़ित छात्रों ने उक्त मामले में जांच के लिए अलग से केन्द्रीय स्तर की टीम गठित करने और आरईटी 2024-25 को पूरी तरह रद्द कर के दोबारा नियमपूर्वक कराएं जाने की मांग की है।
आरईटी समन्वयक ने निजी ईमेल मे मंगाए गए थें प्रश्नपत्र,
शिकायत में सबसे बड़ा आरोप आरईटी समन्वयक द्वारा अलग-अलग विभागों से परीक्षा प्रश्न-पत्र अपनी निजी ईमेल आईडी से मंगवाने का है, जिससे प्रश्न लीक होने की आशंका जताई गई है। साथ ही, परीक्षार्थियों को स्कोरिंग प्रणाली और मूल्यांकन प्रक्रिया की कोई जानकारी नहीं दी गई। रोल नंबर के साथ केवल अंक प्रकाशित किए गए, जिससे परीक्षा परिणामों की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। जांच एजेंसी यदि सिर्फ आवेदकों द्वारा आरटीआई में पूछे गए सवालों को जांच का विषय मान कर जांच की आंच बढ़ाए तो नये पुराने मिला के करोड़ों रुपए के चौकाने वाले भ्रष्टाचार सामने आएंगे!
पारदर्शिता के आभाव में उक्त तरह के न जाने कितने चहेते 'मुन्नाभाईयों' को पीएचडी में प्रवेश दिया गया, कइयों की हालत तो ऐसी है कि शुद्ध हिंदी या अपनी मातृभाषा में इमला नहीं लिख सकतें, और उन्हें फर्जी तरीके से पीएचडी में प्रवेश दे दिया है।
कम अंक पाने वाले को मिला इंटरव्यू
अर्थशास्त्र विभाग के एक मामले में महज 11 अंक पाने वाली परीक्षार्थी को चोरी-छिपे इंटरव्यू में बुलाकर अनारक्षित श्रेणी में प्रवेश दे दिया गया, अर्थशास्त्र विभाग में रोल नंबर 2401106057 को मात्र 11 अंक मिलने के बावजूद, उसे गुप्त ईमेल से इंटरव्यू बुलाकर अनारक्षित कोटे में अनंतिम सूची में शामिल कर के प्रवेश दिला दिया गया। आरईटी समन्वयक के चहेतों के अलावा अन्य छात्रों को यह अवसर नहीं मिला। इतना ही नहीं, कई छात्रों की ओएमआर शीट्स कथित तौर पर खाली होने के बावजूद चयन कर लिया गया। विश्वविद्यालय प्रशासन पर आरोप है कि उन्होंने न तो उत्तर पुस्तिकाओं की प्रतिलिपि दी और न ही रिचेकिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती।
आरटीआई को अड़ंगा मान रहा विश्वविद्यालय प्रबंधन
रवि त्रिपाठी सहित दर्जनों परीक्षार्थियों द्वारा दायर आरटीआई आवेदनों में अपने प्रश्न-पत्र, ओएमआर शीट और जांच के लिए नियुक्त कथित निजी फर्म के नियुक्ति संबंधी कागजों की प्रतियां मांगी गई थीं, लेकिन विश्वविद्यालय प्रबंधन ने उन्हें "गोपनीय दस्तावेज" बताते हुए जानकारी देने से इनकार कर दिया। नियमत: इस संबंध में हुई सभी मीटिंग्स और प्रक्रियाओं की विडियोग्राफी करा के रखनी होती है लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं किया गया।
पर्चेज कमेटी तो गढ़ कहीं जाती है भ्रष्टाचार का
इसी तरह पर्चेज कमेटी से जुड़े मामलों में भी वर्ष 2020 से 2025 तक की जानकारी आरटीआई में देने से मना कर दिया गया। रवि का सवाल है कि जब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय भी आरटीआई के दायरे में आता है, तो यह तो मात्र विश्वविद्यालय की छोटी सी पर्चेज कमेटी है, और इसमें छुपाने लायक कुछ रहता नहीं है, ये कोई रक्षा सौदा का मामला थोड़ी न है कि जानकारी बाहर आ जाने से देश की सुरक्षा को ख़तरा है, दाल मे जरूर कुछ काला है तभी आरटीआई आवेदन देखकर गला सूख रहा है।
अपनी मांगों पर अडिग हैं छात्र
आरईटी 2024-25 परीक्षा को तत्काल रद्द किया जाए।
परीक्षा से जुड़े सभी अधिकारियों की केंद्रीय एजेंसी से जांच कराई जाए।
वर्ष 2018 से बनी सभी समितियों के निर्णयों की सीबीआई जांच हो।
पर्चेज कमेटी और अम्बेडकर चेयर के आर्थिक मामलों का सोशल ऑडिट हो।
पक्षपात, गुटवाजी में लिप्त विवादित प्रोफेसरों का तत्काल तबादला किया जाए।
पारदर्शिता संबंधित सभी बिंदुओं पर पुनर्समीक्षा करते हुए सभी को सख्ती से लागू किया जाए।
प्रशासनिक चुप्पी और छात्र असंतोष
छात्रों का कहना है कि यदि इन आरोपों की निष्पक्ष जांच नहीं हुई तो यह पूरे उच्च शिक्षा तंत्र की साख पर सवाल खड़े करेगा। रवि त्रिपाठी का कहना है, अगर भ्रष्टाचार नहीं हुआ है, तो आरटीआई के तहत मांगी गई सूचनाएं छुपाई क्यों जा रही हैं? शिकायत पर निष्पक्ष जांच करने में दिक्कत क्या हो रही है? उन्होंने चेताया कि ऐसे मामलों पर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो ‘मुन्ना भाई संस्कृति’ को और बल मिलेगा।
इनका कहना है।
आरईटी के संबंध में शिकायत प्राप्त हुई है मैने संबंधित विभाग को जवाब देने के लिए भेज दिया है, जवाब आ जाए तब देखते हैं।
डॉ. गौरी शंकर महापात्र
(नोडल अधिकारी)
मैंने और दर्जनों परीक्षार्थियों ने आरटीआई के माध्यम से अपने-अपने प्रश्न पत्र और उत्तर पत्र की छायाप्रति मांगी उसपर लोक सूचना अधिकारी ने हमारे लिए हमारा ही काग़ज़ गोपनीय दस्तावेज बताते हुए सही जबाब देने से मना कर दिया, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन का अहंकार और आरईटी के समन्वयक का भ्रष्टाचार कितना बढ़ गया है।
रवि त्रिपाठी
(परीक्षार्थी आरईटी 2024-25)
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